Wednesday, October 1, 2008

जिन्हें चलना सिखाया, उन्हीं ने मारी ठोकर

अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस पर बुजुर्गो की शान में बड़े-बड़े कसीदे पढ़े जाते हैं, लेकिन सच तो यह है कि ये बुजुर्ग अकेलेपन की जिंदगी जीने के लिए विवश हैं। कभी बेटे की फटकार तो कभी बहू की मार अब इनकी आंखों की आंसू बन गए हैं।
71 वर्ष के राम गोपाल श्रीवास्तव ने कढ़ाई का काम करके एक-एक पाई जोड़ी और अपने इकलौते बेटे को खूब पढ़ाया लिखाया। पूरा जीवन किराए के मकान में गुजार गया। बेटा केके श्रीवास्तव भी पिता के अरमानों पर खरा उतरा और एकाउंटेंट बना। पर शादी के बाद बेटे के रंग बदल गए। पिता को किराए के मकान में अकेला छोड़कर स्वयं जरौली में मकान लेकर रहने लगा। सारी उम्र कढ़ाई का काम करने के कारण राम गोपाल की आंखें भी जवाब दे गई। आठ साल पहले राम गोपाल को पैर टूटा इलाज के रुपए न होने से वे पैरों से लाचार हो गए। 2004 में उनकी पत्नी ने भी साथ छोड़ दिया। सब कुछ खत्म होने के बाद उन्हें किराए का मकान छोड़ना पड़ा। दर दर की ठोकरें खाने के बाद समाजसेविका मंजू भाटिया तीस सितंबर को स्वराज वृद्धाश्रम ले आई।
बहू ने कीं चप्पलों से पिटाई
65 वर्ष के राम स्वरूप 27 जून को आश्रम में आए थे। नौबस्ता के रहने वाले राम स्वरूप ने दिन रात सिलाई का काम करके अपने व्यवसाय को बढ़ाया और एकलौते बेटे को पाला। बड़ा होकर बेटे ने दासू कुआं चौराहे पर स्थित पिता की दुकान संभाल ली। पिता ने बड़े अरमानों से बेटे की शादी की। 1999 में पत्नी का साथ छूटने के बाद उनकी बहू व बेटे ने रंग बदलना शुरू कर दिया। पेट भर भोजन मिलना बंद हो गया। बेटा आए दिन पीटने लगा। एक दिन तो बहू ने उन्हें चप्पलों से पीटा। उस दिन उन्हें लगा कि वह जिंदा क्यों है? उसी क्षण वे घर छोड़कर जिन्दगी से दूर जाने के लिए निकले लेकिन पहुंच गए स्वराज आश्रम।
संपत्तिबेटों को क्या दी, आश्रम बना आशियाना
आगरा के ओम प्रकाश कटियार ने 66 वर्ष की उम्र तक खूब काम किया। जाजमऊ से आगरा तक लेदर व रबड़ का व्यवसाय किया। धन की भी कमी नहीं थी। ऊपर से ईश्वर ने उन्हें दो बेटे दिए तो खुशियों में चार चांद लग गए। बड़े होने पर बेटों ने पिता का व्यवसाय संभाल लिया। ओम प्रकाश ने भी सारी संपत्तिअपने उनके नाम कर दी। फिर बेटों ने पिता को धक्के मारकर घर से निकाल दिया। वह भी स्वराज आश्रम में संतान का संताप झेल रहे हैं।
उम्र के आखिरी पड़ाव में अकेली है वो
ऐसे हीं झुर्रीदार चेहरा, सफेद बाल, दोहरी कमर और चलने की ताकत खो चुके पैर। ये पूरा व्यक्तित्व उस महिला का है, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर खुद को एकदम अकेला पा रही है। रह-रह कर उसकी जुबान पर एक ही वाक्य आता है, लोगों के पास अब वक्त नहीं है। यह केवल इस महिला ही नहीं बल्कि उनके जैसे उम्रदराज लोगों की पूरी पीढ़ी का दर्द है, जिनका अस्तित्व अपने ही घर में एक कोने में पड़े कबाड़ से ज्यादा नहीं रह गया है।
नाम : सावित्री देवी ठाकुर
उम्र : करीब 80 वर्ष
रंग : गेहुंआ
निवास : फिलहाल पिछले दो दिन से गोविंद नगर दो व तीन ब्लाक की सड़क पर करंट उतर आने वाले खंभे के बगल में।
नवरात्र में जब पूरा देश मां जगदंबा की आराधना में जुटा है। इस वृद्धा के परिजनों ने उनसे अपना पल्ला झाड़ लिया। दो दिन पहले रविवार सुबह गोविंद नगर में ब्लाक दो व तीन के बीच की सड़क पर रहने वाले जितेंद्र कुमार जब टहलने निकले तो उन्हें घर के बाहर सड़क पर घिसट कर जाती वृद्ध महिला नजर आई। वह कुछ दूर जाकर ठहर गई। दिनभर आसपास सड़क पर बैठी रही वह महिला सोमवार को भी आसपास रही और शाम को नाली के किनारे खाली जगह पर लेट गई। खुद को साफ रखने में अक्षम होने के कारण उनके कपड़े बुरी तरह गंदे व दुर्गधयुक्त हैं। बगल में ही बिजली का वह खंभा भी था जिसमें अक्सर करंट उतर आता है।
पहले दो दिन उसे भिखारी समझते रहे आसपास रहने वाले लोगों की आंखें उस समय खुली रह गई जब नवरात्र के पहले दिन सुबह पास ही स्थित दुर्गा मंदिर आते जाते श्रद्धालुओं ने उन्हें भिखारी समझ उनके सामने रुपये डाल दिए, मगर उन्होंने रुपयों को हाथ भी नहीं लगाया।
क्षेत्र के ही विक्रम मल्होत्रा के मुताबिक एक भिखारी महिला वहां आई वह थोड़ी देर वृद्ध महिला से बात करती रही। बातों ही बातों में उसने वहां पर पड़े सारे पैसे उठाकर चली गई। वृद्ध महिला ने इसका कोई विरोध भी नहीं किया। जिससे साफ हो गया कि महिला कोई भिखारी नहीं है।
जितेंद्र कुमार के मुताबिक उनकी जो स्थिति है, उससे तो यही लगता है कि उन्हें वहां कोई छोड़ गया है। उनके मुताबिक मंगलवार सुबह उन्होंने चाय देने की कोशिश की तो वह बोलीं कि दो दिन से कुछ नहीं खाया है, बिस्कुट नहीं दोंगे। वह अपनी गंदी धोती बदलवाने की भी जिद करती हैं।
बातचीत की गई तो बमुश्किल उन्होंने अपना नाम बताया। काफी कुरेदने के बाद उन्होंने पति का जिक्र तो किया लेकिन वह कहां रहते हैं और यहां उन्हें कौन छोड़ गया, इस पर वह चुप्पी साध लेती हैं।
उन्होंने अपनी बेटी का नाम मीरा बताया और यह भी बताया कि मीरा का एक बेटा भी है। दामाद के मकान का तो जिक्र वह करती हैं लेकिन दामाद का नाम और वह मोहल्ला कौन-सा है, इसके बारे में वह कुछ नहीं बोलतीं।
बेटी-नाती के पास चलने की बात कहते ही वह इनकार से सिर हिला देती हैं। उनके होठों से एक ही बात निकलती है, अब किसी के पास उनके लिए समय नहीं है। शून्य में ताकती हुई वह कई बार बड़बड़ाती हैं, मुझसे कोई चालाकी नहीं कर सकता मगर वह यह नहीं बतातीं कि किसने उनसे चालाकी करने की कोशिश की।
मेरा विचार
१। जो अभी जवान हैं वो भी एक दिन बुजुर्ग बनेगें
२। हमारे बुजुर्ग हमसे प्यार और अच्छी परवरिश की अपेक्षा रखतें हैं यह कोई अपराध नहीं बल्कि उनका हक हैं और जवानों का उत्तरदायित्व भी
३। हमारे बुजुर्ग दुनिया का अनुभव रखतें हैं अगर हम उनके पास बैठें तो वो हमें बड़ी सरलता से उसे हमें समझा सकतें हैं

2 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

वक्त-वक्त की बात है साईं..
कहीं दिन तो कहीं रात है साईं..
अब तो जंगल ही अच्छे लगते हैं,
क्योंकि घर-घर में घात है साईं..

एस. बी. सिंह said...

किसी का शेर है --

या तो हम अपनी पहले की अदा भूल गए,
या यूँ कहिए कि अन्दाज़ेवफ़ा भूल गए ।
उसकी फरमाइशें , बच्चों की जिदें , अपनी शराब
सब तो ले आए बस माँ की दवा भूल गए।