जिस प्रकार से ड्राइंग रूम और रसोई की खिड़की पर रखे खूबसूरत पौधे घर के सौंदर्य में चार चांद लगाते है। उसी प्रकार से पेड़-पौधों के बीच समय गुजारने वाले बच्चों के व्यक्तित्व में चार-चांद लग जाते है अर्थात वे हमेशा प्रसन्न रहते है। यह कहना है ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का। वैज्ञानिकों का कहना है कि गमलों में फूलों के बीज डालने के बाद उनसे निकले अंकुर बच्चों ही नहीं बड़ों को भी उत्साहित करते है।
बागवानी के काम में भाग लेने से बच्चा अभिभावकों के साथ अपना भावनात्मक सामंजस्य भी स्थापित करता है। इससे बच्चे की शारीरिक गतिविधियों में भी वृद्धि होती है। जब आप अपने लॉन में सुबह-शाम पौधों को पानी देती है और आपके बच्चे इस काम में आपकी सहायता करते है, तो एक प्रकार से उनकी एक्सरसाइज भी हो जाती है। रंग-बिरंगे फूलों पर इतराती तितलियां और भंवरे आपके बच्चे को अपने पीछे-पीछे भागने के लिए उकसाते है। इससे उनकी जॉगिंग हो जाती है।
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बागवानी के जरिये बच्चे सीधे तौर पर प्रकृति के साथ अपना संबंध जोड़ते है। इससे बच्चे की जिज्ञासु प्रवृत्ति संतुष्ट होती है। साथ ही उनमें जोश और उत्साह का संचार होता है। प्रकृति के विषय में उन्हे आश्चर्यजनक जानकारी मिलती है। रंग-बिरंगे और किस्म-किस्म के फूल बच्चों को प्रकृति में फैली विविधता से परिचय कराते है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों को बागवानी का व्यवहारिक ज्ञान देने के लिए उन्हे शुरुआती दौर से ही सिखाएं। विभिन्न रंग-बिरंगी पुस्तकों से उन्हे मौसमी और पूरे साल हरे-भरे रहने वाले पौधों की जानकारी दें। बचपन में प्रकृति से इस प्रकार का सीधा संबंध उन्हे आगे के जीवन में भी उपयोगी सिद्ध होगा। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकृति के साथ रूबरू होने से बच्चों में धैर्य की भावना विकसित होती है, जो जीवन में सफलता के लिए निहायत जरूरी है। पौधों का धीरे-धीरे बढ़ना, समय के साथ उनका पुष्पित होना और उनमें फल आना यह सब बच्चे को धैर्य सिखाते है।
बागवानी के काम में भाग लेने से बच्चा अभिभावकों के साथ अपना भावनात्मक सामंजस्य भी स्थापित करता है। इससे बच्चे की शारीरिक गतिविधियों में भी वृद्धि होती है। जब आप अपने लॉन में सुबह-शाम पौधों को पानी देती है और आपके बच्चे इस काम में आपकी सहायता करते है, तो एक प्रकार से उनकी एक्सरसाइज भी हो जाती है। रंग-बिरंगे फूलों पर इतराती तितलियां और भंवरे आपके बच्चे को अपने पीछे-पीछे भागने के लिए उकसाते है। इससे उनकी जॉगिंग हो जाती है।
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बागवानी के जरिये बच्चे सीधे तौर पर प्रकृति के साथ अपना संबंध जोड़ते है। इससे बच्चे की जिज्ञासु प्रवृत्ति संतुष्ट होती है। साथ ही उनमें जोश और उत्साह का संचार होता है। प्रकृति के विषय में उन्हे आश्चर्यजनक जानकारी मिलती है। रंग-बिरंगे और किस्म-किस्म के फूल बच्चों को प्रकृति में फैली विविधता से परिचय कराते है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों को बागवानी का व्यवहारिक ज्ञान देने के लिए उन्हे शुरुआती दौर से ही सिखाएं। विभिन्न रंग-बिरंगी पुस्तकों से उन्हे मौसमी और पूरे साल हरे-भरे रहने वाले पौधों की जानकारी दें। बचपन में प्रकृति से इस प्रकार का सीधा संबंध उन्हे आगे के जीवन में भी उपयोगी सिद्ध होगा। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकृति के साथ रूबरू होने से बच्चों में धैर्य की भावना विकसित होती है, जो जीवन में सफलता के लिए निहायत जरूरी है। पौधों का धीरे-धीरे बढ़ना, समय के साथ उनका पुष्पित होना और उनमें फल आना यह सब बच्चे को धैर्य सिखाते है।
4 comments:
बिल्कुल सही है!!
बच्चों में प्रकृति से सामीप्य बढ़ना ही चाहिये।
बहुत सही जानकारी है ...बच्चे शुरू से ही कुदरत से जुडेंगे तो अधिक सीख पायेंगे
सही है विवेक. मै एक NGO प्रेमालयम से जुडा हू और हम अपनी सन्स्था द्वारा चलाये जा रहे स्कूल मे बच्चो से पौधे लगवाने और देखभाल करवाने का कार्यक्रम चलाने वाले है.
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