भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण शारीरिक रूप से लाचार, विकलांग, बुजुर्गो और गर्भवती महिलाओं पर मेहरबान होने जा रहा है। बहुत जल्द ये लोग सैकड़ों बरस पहले बने विश्वप्रसिद्ध स्मारकों को बिल्कुल करीब से निहार सकेंगे। ऐसा लकड़ी की रैंप बनने से संभव होगा जिसकी शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तहत दिल्ली की कुतुबमीनार से हो रही है। सब ठीक रहा तो सितंबर के अंत तक कुतुबमीनार देखने आने वाले विकलांग व्यक्ति किसी का हाथ पकड़ने या सहारा ढूंढने के बजाय खुद व्हीलचेयर पर बैठ चप्पे-चप्पे तक घूम-फिर सकेंगे। इसके बाद ये सुविधा लालकिला समेत देश के कुछ अन्य चुनिंदा स्मारकों में भी मुहैया कराने की भी योजना है। ऐसा स्वयं नामक एनजीओ की मदद से संभव हुआ है, जिसकी तस्दीक एएसआई के दिल्ली सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् केके मोहम्मद करते हैं।
श्री मोहम्मद कहते हैं कि देखने में आया है कि एक उम्र पर पहुंचने के बाद लोगों को चलने-फिरने में इतनी दिक्कत होती है कि उनके लिए सीढि़यां चढ़ना-उतरना मुश्किल हो जाता है। विकलांगों के अलावा यही स्थिति गर्भवती महिलाओं और लकवे के शिकार या अन्य अक्षम लोगों की भी होती है। हाथ-पांव से लाचार व्यक्ति कुतुबमीनार परिसर आने के बाद भी अंदर घुस नहीं पाता। इसके मद्देनजर स्वयं संस्था के सहयोग से कुछ दिनों से कुतुबमीनार में कोने-कोने तक व्हील चेयर पर बैठने वाले विकलांगों को पहुंचाने की खातिर लोहे के बेस वाला लकड़ी का रैंप लगाया जा रहा है। इस संबंध में स्वयं संस्था की संस्थापक अध्यक्षा स्मिनू जिंदल का कहना है कि उनका संगठन एएसआई को स्मारकों में रैंप बनाने के लिए कंसलटेंट की भूमिका निभा रहा है। यहां कुल पांच रैंप बनेंगे। कुतुबमीनार में व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति को देखते हुए टिकट खिड़की को कुछ नीचे बनाया गया है। व्यवस्था ऐसी है कि पार्किग क्षेत्र में वाहन से उतरने के फौरन बाद से विकलांगों के लिए अलग टिकट खिड़की और सुविधाजनक शौचालय भी बनाए गए हैं। कुतुबमीनार परिसर में नेत्रहीनों के लिए पैकटाइल पाथवे भी बना है। लालकिला और आगरा के ताजमहल समेत गोवा के दो चुनिंदा वर्ल्ड हेरिटेज स्थलों में भी रैंप की सुविधा मुहैया कराई जाएगी। लालकिला में पब्लिक पार्किग के पास ये काम शुरू भी हो चुका है।
श्री मोहम्मद कहते हैं कि देखने में आया है कि एक उम्र पर पहुंचने के बाद लोगों को चलने-फिरने में इतनी दिक्कत होती है कि उनके लिए सीढि़यां चढ़ना-उतरना मुश्किल हो जाता है। विकलांगों के अलावा यही स्थिति गर्भवती महिलाओं और लकवे के शिकार या अन्य अक्षम लोगों की भी होती है। हाथ-पांव से लाचार व्यक्ति कुतुबमीनार परिसर आने के बाद भी अंदर घुस नहीं पाता। इसके मद्देनजर स्वयं संस्था के सहयोग से कुछ दिनों से कुतुबमीनार में कोने-कोने तक व्हील चेयर पर बैठने वाले विकलांगों को पहुंचाने की खातिर लोहे के बेस वाला लकड़ी का रैंप लगाया जा रहा है। इस संबंध में स्वयं संस्था की संस्थापक अध्यक्षा स्मिनू जिंदल का कहना है कि उनका संगठन एएसआई को स्मारकों में रैंप बनाने के लिए कंसलटेंट की भूमिका निभा रहा है। यहां कुल पांच रैंप बनेंगे। कुतुबमीनार में व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति को देखते हुए टिकट खिड़की को कुछ नीचे बनाया गया है। व्यवस्था ऐसी है कि पार्किग क्षेत्र में वाहन से उतरने के फौरन बाद से विकलांगों के लिए अलग टिकट खिड़की और सुविधाजनक शौचालय भी बनाए गए हैं। कुतुबमीनार परिसर में नेत्रहीनों के लिए पैकटाइल पाथवे भी बना है। लालकिला और आगरा के ताजमहल समेत गोवा के दो चुनिंदा वर्ल्ड हेरिटेज स्थलों में भी रैंप की सुविधा मुहैया कराई जाएगी। लालकिला में पब्लिक पार्किग के पास ये काम शुरू भी हो चुका है।
1 comment:
" a veru good news to read, ek bhut acche pehl ke gyee hai , ptta nahe ekitne viklang log in subko dekhne ke liye tarestey honge..."
Regards
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