This blog is designed to motivate people, raise community issues and help them. लोगों को उत्साहित करना, समाज की ज़रुरतों एवं सहायता के लिए प्रतिबद्ध
Monday, September 29, 2008
कूड़ा कितना सोणा है
आरएन अरोड़ा के शब्दकोष में 'कूड़ा' शब्द है ही नहीं। जिन प्रयुक्त धातुओं, गत्तों व लकड़ी के टुकड़ों को लोग कूड़ेदान में डाल देते हैं, अरोड़ा साहब के घर का कोना-कोना उन्हीं वस्तुओं से ऐसे सजा है कि एक पल आपको यकीन नहीं होगा। सोलह साल पहले रेलवे के वाराणसी डीएलडब्ल्यू कारखाने से रिटायर्ड 76 वर्षीय अरोड़ा प्रबंध गुरुओं के लिए चलती-फिरती 'पाठशाला' हैं। अरोड़ा अभी तकरोही [लखनऊ] के एक स्कूल में नियमित प्रशिक्षण दे रहे हैं।
करीब चालीस वर्ष अभियांत्रिक प्रकृति की नौकरी से जुड़े रहने के कारण अरोड़ा के कूड़ा प्रबंधन माडल पर री-यूज के सिद्धांत की छाप दिखती है। उनके कुछ निष्कर्ष हैरतअंगेज हैं। मसलन, सिर्फ लखनऊ शहर के लोग शू पालिश की खाली डिब्बी व एलपीजी सिलेंडर की सील में इस्तेमाल होने वाली एल्यूमिनियम फायल इकट्ठा करना सीख लें, तो हर महीने मालगाड़ी का एक नया वैगन बनाने भर को धातु मिल सकती है। अरोड़ा कहते हैं कि यह जागृति देश भर में फैल जाए, तो धातु संबंधी करीब 40 फीसदी जरूरत री-यूज से ही पूरी की जा सकती है। शादी के निमंत्रण कार्डो से बने छोटे-छोटे डिब्बे, गिफ्ट के लिफाफे और तरह-तरह के स्टैंड अरोड़ा जी के ड्राइंगरूम व बेडरूम में दीवारों पर टंगे देखकर उनके इस तर्क को काट पाना कठिन हो जाता है कि कोई भी प्रयुक्त वस्तु कूड़ा नहीं होती।
किसी स्वार्थ या सरकारी सहायता के बगैर कूड़ा प्रबंधन में जुटे अरोड़ा अकेले धुनी नहीं हैं। पेपर मिल कालोनी में पिछले पंद्रह सालों से यह अभियान चला रहीं प्रभा चतुर्वेदी इस क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यक्तियों व संगठनों के लिए 'रोल माडल' हैं। दक्षिण भारत के एक प्रतिष्ठित कूड़ा प्रबंधन संगठन से जुड़ीं प्रभा चतुर्वेदी का तरीका भी सीधा-सादा है। वह लोगों को सिर्फ यह सिखाती हैं कि घर में दो कूड़ादान रखें। एक में गीला कूड़ा डालें, दूसरे में सूखा। गीले कूड़ा का आशय सब्जियों-फलों के छिलकों, बची-खुची खाद्य सामग्री व पौधों के पत्तों से है, जबकि सूखे कूड़े में कांच, धातुएं, टिन के डिब्बे आदि शामिल हैं। प्रभा चतुर्वेदी कहती हैं कि गीले कूड़े को किसी गड्ढे में दबाकर बढि़या जैविक खाद बनाई जा सकती है, जिसे या तो किचन गार्डेन में इस्तेमाल किया जा सकता है, अथवा बेचा जा सकता है। अपने घर के सामने पार्क में खुद उन्होंने यह प्रयोग सफलतापूर्वक किया है। उनकी प्रेरणा से लखनऊ में करीब 60 व्यक्ति अपने मोहल्लों में इसी तरह कूड़ा प्रबंधन की अलख जगा रहे हैं।
ऐसे ही एक अन्य धुनी हैं डा. जेके जैन उन्होंने सरकारी वकील की नौकरी से बचा अपना सारा समय पर्यावरण रक्षा, खासकर कूड़ा प्रबंधन के लिए झोंक दिया। डा. जैन ने पालीथीन का इस्तेमाल घटाने के लिए 'पर्यावरणीय रुमाल' का डिजाइन तैयार किया है। पतले सूती कपड़े का यह रुमाल वास्तव में छोटा-सा झोला ही होता है, जिसके ऊपरी हिस्से को दो बटन लगाकर इस तरह बंद कर दिया जाता है कि दिन भर रुमाल के तौर पर इस्तेमाल के बाद शाम को घर लौटते वक्त बटन खोलते ही यह झोले में तब्दील हो जाता है। इसमें दो-तीन किग्रा. फल, सब्जियां या कोई भी अन्य वस्तु रखी जा सकती है। डा. जैन कई जजों व अपने वकील मित्रों को ये 'पर्यावरणीय रुमाल' भेंट कर चुके हैं। कपड़ा वह खरीदकर लाते हैं और घर पर ही उनकी वकील पत्नी डा. कुसुम जैन रुमाल सिल देती हैं। मियां-बीवी हर महीने दस-बीस रुमाल बांटते हैं। डा. जैन ने पांच सूत्री पर्यावरणीय जीवन शैली का माडल विकसित किया है, जिसमें रुमाल के अलावा पर्यावरणीय वाहन, पर्यावरणीय ध्वनि, पर्यावरणीय लेखन और पर्यावरणीय परंपराएं शामिल हैं। उनका सिद्धांत है कि पांच किमी तक यात्रा पैदल या साइकिल से की जाए, ध्वनि विस्तारक साधनों से परहेज किया जाए, यूज एंड थ्रो रिफिल के बजाय स्याही भरकर निब वाली पेन से लिखने की आदत डाली जाए तथा प्रकृति-हितकारी परंपराएं अपनाई जाएं, तो पर्यावरण प्रदूषण रहित हो जाएगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
कूड़ा इकठ्ठा करने और उसे रीसाइकल योग्य बनाने की तो महती आवश्यकता है।
भारत में कूड़े के प्रति सही एटीट्यूड विकसित होना चाहिये।
कभी मैने भी इस विषय पर लिखा था।
अच्छा आलेख!!
कुछ भी अनुपयोगी नहीं होता। मनुष्य का मल भी खेत में खाद बन जाता है। फिर क्या है जो अनुपयोगी होगा। सिवा पोलीथीन-प्लास्टिक के?
अच्छी जानकारी दी है आपने। शुक्रिया।
अच्छी जानकारी है क्या इन लोगों का पता, फोन नंबर, ईमेल मिल सकता है।
Post a Comment