Sunday, September 21, 2008

लंदन में टिम, जौनपुर में टिम बाबा

दो एकड़ में बन रहे भगवान लक्ष्मी नारायण के विशाल मंदिर का परिसर, चारों तरफ मंदिर निर्माण की हलचल। केंद्र में है धाराप्रवाह हिंदी बोलता एक अंग्रेज। ईसाई धर्म छोड़ कर हिंदू हो चुका यह अंग्रेज मंदिर निर्माण का अगुआ है। उसके जीवन का लक्ष्य न केवल यहमंदिर है, बल्कि आयुर्वेदिक अस्पताल और लड़कियों का कालेज बनाना भी है। ग्रामीण उसके सहयोगी हैं।
एक ओर तो उड़ीसा और कर्नाटक से हिंदू-ईसाई संघर्ष की खबरें आ रही हैं, धर्मातरण चर्चा में है और दूसरी तरफ टिम जैसे लोग भी हैं, जो अठारह देशों में भटकने के बाद अब भारत में हैं, भारतीय संस्कारों में रमे हैं और जिनकी वेशभूषा या भाषा उनके अंग्रेज होने की चुगली नहीं करती। उनकी भक्ति देख सुबह-शाम पूजा-पाठ व भजन-कीर्तन के लिए भीड़ इकट्ठा हो जाती है। लंदन में जन्मे और दक्षिण अफ्रीका में बिल्डिंग कांट्रैक्टर रहे टिम केली अब जौनपुर में टिम बाबा कहलाते हैं।
मथुरा-वृंदावन में अंग्रेज अक्सर दिख जाएंगे, लेकिन वे सब किसी पंथ, संस्था से जुड़े हैं। 47 वर्षीय टिम इस मायने में अलग हैं, क्योंकि वह मंदिर, आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक अस्पताल और महिला कालेज का अपना सपना अपने स्तर से साकार कर रहे हैं। इंग्लैंड में रहती उनकी दो बेटियां एंजल और वेथीपर्ल अपनी कमाई से बचत करके उन्हें इस काम के लिए पैसा भेजती हैं। बेशक, यह काम उनके गुरुभाई और ग्रामीणों के सहयोग के बिना नहीं हो सकता, लेकिन टिम बाबा का योगदान अतुलनीय है। समाधगंज बाजार में बन रहे 365 खंभों के इस विशाल मंदिर के लिए जयपुर से पत्थर और शिल्पी आते हैं।
टिम में हिंदू धर्म के प्रति आकर्षण की कथा भी रोचक है। दक्षिण अफ्रीका में काम करते हुए टिम केली एक मकान की दूसरी मंजिल से गिर गए और उनकी कमर की हड्डी टूट गयी। कारोबार ठप हो गया और टिम लगभग तीन वर्षो तक व्हील चेयर पर रहे। निराश टिम को किसी ने सलाह दी, तो उन्होंने आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथी दवाओं का दामन पकड़ा और साथ में योग भी करने लगे। दैवयोग से पांच साल बाद वे स्वस्थ हो गये। इससे टिम के मन में भगवान के प्रति अनोखा अनुराग पैदा हो गया। स्वस्थ होने के बाद भी उनका मन काम में नहीं लगता था और आखिरकार एक दिन वह सब कुछ छोड़कर निकल पड़े विभिन्न देशों के भ्रमण पर। अठारह देशों में घूमने के बाद टिम भारत आये और यहां अंजलि पर्वत पर स्वर्गीय लक्कड़ महाराज के आश्रम में पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात हुई महाराज के शिष्य तुलसीदास महाराज से। टिम ने उन्हें अपना गुरु मान लिया और योग व तप करने लगे। वर्ष 2004 में वह कुरनी [समाधगंज-जौनपुर] पहुंचे व उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया, जहां सन 1990 में लक्कड़ महाराज ने श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर की नींव रखी थी।

4 comments:

सतीश पंचम said...

रोचक जानकारी......शिक्षाप्रद उध्दरण ।

रंजन (Ranjan) said...

यु ही कोई फिदा नहीं होता..

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया जानकारी है।आभार।

Udan Tashtari said...

आभार इस आलेख के लिए. बहुत रोचक!!