रायपुर. 18 साल पहले दो किशोरों ने साथ साथ काम करना शुरू किया। पहले कूरियर कंपनी में काम किया फिर ढोकला पैकिंग करने लगे मेडिकल किताबों के सेल्समैन बने और फिर सोचा कि खुद ही इस कारोबार के मालिक क्यों न बनें? बड़ी सोच, मेहनत और लगन ने आज उन्हें एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि नई पीढ़ी को उनकी मिसाल दी जा सकती है।
1990 के आसपास खोमलाल के पिता भरत चंद्रेश्वर श्रवण के घर किराए से रहते थे। खोमलाल दुर्ग के बेरला गांव में पढ़ता था। दसवीं फेल होने के बाद वह पिता के पास रायपुर आ गया। यहीं उसकी श्रवण से मुलाकात हुई।
श्रवण तब स्कूल में पढ़ता था। खोमलाल एक कूरियर कंपनी में काम करने लगा। शहर उसके लिए नया था इसलिए वह श्रवण को साथ लेकर घूमता था। इस घूमने का एक नतीजा यह हुआ कि श्रवण भी फेल हो गया और खोमलाल ने उसे भी एक कूरियर कंपनी में काम दिला दिया।
दोनों कूरियर का काम करने के साथ पाकेटमनी के लिए सुबह 4 बजे से 8 बजे तक नहरपारा के एक संस्थान में डेढ़ रुपये घंटे के हिसाब से ढोकला पैकिंग करने लगे। खोमलाल ने बताया कि इसी बीच जिस कूरियर कंपनी में वह काम करता था वह बंद हो गई। जिसके बाद कुछ दिन इधर-उधर भटकने के बाद वह एक मेडिकल बुक की दुकान में बतौर सेल्समैन काम करने लगा।
यह काम करते करते खयाल आया कि क्यों न इसी काम को मालिक की तरह किया जाए? दोनों ने नौकरी छोड़ दी और शहर के मेडिकल संस्थानों से आर्डर लेने लगे। सेल्समैन का काम करते करते कुछ पहचान तो बन ही गई थी,समय के साथ वह बढ़ने लगी। सुबह सुबह वे मेडिकल कालेज के विद्यार्थियों-शिक्षकों से मुलाकात करते, उनकी जरूरत पूछते और किताबें लाकर देते। ग्राहकों को घर पहुच सेवा मिलने लगी तो वे उन्हें आर्डर देने लगे। काम चल निकला।
काम बढ़ने लगा तो दोनों ने गुढ़ियारी में किराए की एक दूकान ली। किराया था 900 रुपए। वहीं से अपना कारोबार बढ़ाने लगे। मेहनत में कभी कमी नहीं की। काम और बढ़ा, आर्थिक स्थिति सुधरी तो उन्होंने जेल रोड पर दूकान लेने की हिम्मत की। आज एक दूकान के अलावा उनका एक शाप कम गोडाउन भी जेल रोड पर है।
डेढ़ करोड़ सालाना टर्न ओवर होने के बाद भी वे आराम से नहीं बैठे हैं। उनका लक्ष्य बड़ा है और इसके लिए वे मेहनत भी अधिक करते हैं। वे अब भी सेल्समैन की तरह घूमते हैं। उनके घूमने का दायरा अब रायपुर से आगे बढ़कर पूरा छत्तीसगढ़ हो गया है। प्रदेश के और भी शहरों में मेडिकल किताबों की दूकानें खोलना उनका सपना है जिसके लिए वे मेहनत व लगन से जुटे हुए हैं।
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Friday, September 12, 2008
डेढ़ रुपए से डेढ़ करोड़ तक का सफर
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5 comments:
tarun peedhi ke liye ek uttam drishtant!
shubh kamnaen !
दोनों युवाओं को शुभकामनायें! परिचय कराने का धन्यवाद
डेढ़ करोड़ सालाना टर्न ओवर होने के बाद भी वे आराम से नहीं बैठे हैं।
भैया यह हुई न इन्स्पायरिंग पोस्ट! आज ऐसी स्पिरिट की दरकार है।
कलम घसेट पढ़ाई से यह कहीं बेहतर!
really, aise log taareef ke kabil hain..
सत्य | मेहनत करने से देर सबेर नए रास्ते निकलतें हैं | हारिये ना हिम्मत बिसारिये ना राम |
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