Sunday, September 21, 2008

अभी तो वह अनुभव ले रहे हैं

उन्हें किसी नौकरी के इंटरव्यू के लिए नहीं जाना है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। अनुभव के आधार पर उनका कोई प्रमोशन भी नहीं होने जा रहा है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। अभी तो उन्हें अपनी कोई बात, अपनी कोई दलील, अपना कोई पॉइंट भी साबित नहीं करना है कि वह जो कह रहे हैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहे हैं, जो उन्हें अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। अभी तो उन्हें कोई प्रामाणिक किताब नहीं लिखनी है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। उन्हें अनुभवों के आधार पर कोई भाषण भी नहीं देना है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। उन्हें अपने अनुभवों से देश की आने वाले पीढि़यों को शिक्षित भी नहीं करना है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। उन्हें कोई यह चुनौती भी नहीं दे रहा है कि आखिर आपका अनुभव क्या है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। अनुभवहीन बताकर कोई उन्हें कमतर बनाने की कोशिश भी नहीं कर रहा है, जो अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। उन्हें शायद कोई एडवेंचर करने का शौक भी नहीं होगा, जो उन्हें अनुभव चाहिए। फिर भी वह अनुभव ले रहे हैं। गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि हर नए बम विस्फोट से उन्हें अनुभव मिल रहे हैं। नए-नए बम विस्फोट, नए-नए अनुभव। वह अनुभव समृद्ध हो रहे हैं। समृद्ध होना अच्छी बात है। इधर समृद्धि की भूख भी कुछ ज्यादा बढ़ गई है। हर आदमी समृद्धि की दौड़ में है। सरकार तक ने खुली छूट दे दी है, समृद्ध होने की। सो कोई पीछे नहीं रहना चाहता। ऐसे में अनुभव समृद्ध होना भी कोई बुरी बात नहीं। हमेशा अच्छी ही समझी गई है। अच्छी समझ के लिए, अच्छे जीवन के लिए। पर यह अनुभव नया है -गृह मंत्रालय का हर नए बम विस्फोट से अनुभव समृद्ध होने का। जनता तो बम विस्फोटों का काफी अनुभव ले चुकी। बीसियों साल से ले रही है। अनुभव लेते-लेते वह थक चुकी है, तंग आ चुकी है। अब वह और अनुभव नहीं चाहती। माफ करो बाबा। इतना भोगा हुआ यथार्थ पाकर हम क्या करेंगे। वैसे अनुभव तो गृह मंत्रालय भी लेता ही रहा है। उसके अधिकारी, उसकी खुफिया एजंसियां, उसके सुरक्षा बल सब लेते रहे हैं। पर अभी उनका मन नहीं भरा है। इतने अनुभवों के बाद भी उन्होंने ज्यादा नहीं सीखा है। अक्सर तो लोग यही कहते हैं कि उन्होंने कोई सबक नहीं लिया है। खुफिया एजंसियां तो हर बार फेल हो जाती हैं। सुरक्षा बल नाकाम रहते हैं, नाकारा साबित होते हैं। वह बलहीन, तेजहीन, कर्महीन हो गए हैं। पूरी तरह विफल हो गए हैं। इसलिए गृह मंत्रालय को और अनुभव चाहिए। और सबक चाहिए। सफल होने के लिए अनुभव और सबक हमेशा ज्यादा चाहिए, नए-नए चाहिए। लेकिन जनता को अगर लगता है कि यह गलत है, मीडिया को अगर लगता है कि यह गलत है, तो सबसे पहले तो उन्हें अपना रवैया बदलना चाहिए। गृह मंत्रालय को दोषी ठहराना बंद करना चाहिए। खुफिया एजंसियों को विफल बताना बंद करना चाहिए। सुरक्षा बलों को नाकाम और नाकारा कहना बंद करना चाहिए। कहना चाहिए कि अब तक गृह मंत्रालय ने काफी सबक सीख लिए हैं, उसके पास काफी अनुभव है और इन सबकों से सीख लेते हुए, इन अनुभवों के आधार पर वह जो कर रहा है, ठीक कर रहा है। खुफिया एजेंसियों को पूरी तरह सफल बताना चाहिए और सुरक्षा बलों के बल और तेज का गुणगान करना चाहिए। ऐसे में नए-नए अनुभव लेने की भूख नहीं रहेगी। गृह मंत्रालय को लगेगा कि वह काफी अनुभव समृद्ध है। आखिर प्रोत्साहन भी तो एक चीज होती है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो गृह मंत्रालय इसी तरह नए-नए अनुभव लेता रहेगा, पाता रहेगा, बटोरता रहेगा। और आखिर में बम विस्फोट तो पता नहीं रुकेंगे या नहीं, जनता को तो पता नहीं राहत, सुरक्षा और शांति मिलेगी या नहीं, पर होगा यह कि इन अनुभवों के आधार पर रिटायरमंट के बाद गृह मंत्रालय के अधिकारी सुरक्षा सलाहकार बन जाएंगे, किसी राज्य के राज्यपाल हो जाएंगे, सुरक्षा संबंधी किसी कमिटी के अध्यक्ष हो जाएंगे, मीडिया एक्सपर्ट बन जाएंगे और कुछ नहीं होगा तो सुरक्षा संबंधी एक अच्छी सी किताब लिखेंगे और सिलेब्रिटी बन जाएंगे। कर लो क्या करोगे?