Tuesday, September 30, 2008

चढ़ावा तो ठीक, भक्तों की चिंता भी कीजिए!

हम इतने आस्थावान हैं कि तीर्थो पर मन्नत मांगने या पूरी करने जाते हैं और मौत लेकर लौटते हैं। हम इतने धार्मिक हैं कि करोड़ों का चढ़ावा एकत्र कराने वाले हमारे तीर्थ प्रबंधक हमें एक कायदे का बुनियादी ढांचा भी नहीं दे सकते जिसका इस्तेमाल कर हम सुरक्षित ढंग से अपनी आस्था पूरी कर सकें। हम इतने आधुनिक हैं कि हमारी सूचना तकनीक कंपनियां दुनिया भर के ग्राहकों को क्यू मैनेजमेंट सिस्टम, वेटिंग लाइन मैनेजमेंट सिस्टम, क्लोज सर्किट प्रणालियां, ट्रैफिक प्रबंधन तकनीकें बेचती हैं। लेकिन मंदिरों को यह सब नहीं दिखता। ..मंदिरों की सीढि़यों व रास्तों पर अक्सर बिखरने वाले शव बताते हैं कि इस घोर धार्मिक देश में आस्था जानलेवा है और उत्सव जोखिम भरे।
शायद आतंक की कार्रवाई जितनी जानें कई विस्फोटों में लेती हैं, एक मंदिर का अराजक कुप्रबंध उतनी जान एक ही बार में ले लेता है। विडंबना यह है कि बदहाली और कुप्रबंध की यह घातक अपवित्रता देश के प्राचीन और ऐतिहासिक तीर्थो में चरम पर है। इसी देश में तिरुपति, शिरडी, वैष्णो देवी, स्वर्ण मंदिर जैसे तीर्थ भी हैं जिन्होंने श्रद्धालुओं के प्रबंधन की व्यवस्था में आधुनिकता के प्रयोग कर हादसों को दूर रखा। लेकिन पुराने तीर्थो में कुछ नहीं बदला, इसलिए ज्यादातर हादसे इन्हीं तीर्थो में होते हैं।
आखिर एक तीर्थ में सबसे बड़ी चुनौती क्या है, दर्शनार्थियों का प्रबंधन ही न! इसके लिए क्या चाहिए? आधुनिक वेटिंग लाइन मैनेजमेंट सिस्टम, क्लोज सर्किट टीवी, कंप्यूटरीकृत पंजीकरण, सूचना प्रसारण पद्धति आदि से लैस प्रबंधन प्रणाली ही न। देश के संसाधन संपन्न तीर्थो के लिए यह सब करना बहुत आसान है। खासतौर पर उस स्थिति में जबकि इसी देश की दर्जनों कंपनियां ऐसी प्रणालियां बनाकर बेच रही हों और तमाम मंदिरों ने इनका इस्तेमाल भी किया हो।
तिरुपति में भी वर्षो पहले दर्शनार्थियों की लंबी कतारें मंदिर प्रबंधन के लिए बड़ा सरदर्द थीं और 22 घंटे तक लाइनें चलती रहती थीं। तिरुपति प्रबंधन ने महीनों तक तकनीकों विशेषज्ञों के साथ विचार- विमर्श के बाद इसे बदल दिया। कुछ वर्ष पहले आईआईएम अहमदाबाद ने तिरुपति में वेटिंग लाइन प्रबंधन की पड़ताल की थी। यह बताती है कि मंदिर प्रबंधन ने किस तरह बारकोड पर आधारित पंजीकरण प्रणाली शुरू की और लोगों को दर्शन के लिए समय देना प्रारंभ कर दिया। इससे मंदिर के द्वार पर औसत प्रतीक्षा समय केवल आधा घंटे रह गया। इस प्रणाली ने प्रत्यक्ष कतारें समाप्त कर दीं और कंप्यूटर पर व्यवस्था होने लगी।
लगभग इसी तरह की पद्धति वैष्णो देवी मंदिर में भी अपनाई जा रही है। सूत्र बताते हैं कि शिरडी मंदिर सहित कुछ और मंदिर भी अब इसी प्रणाली तरफ बढ़ने की तैयारी कर रहे हैं ताकि एक समय पर मंदिर प्रांगण में निर्धारित क्षमता से ज्यादा लोग न जुटें। सूत्र बताते हैं कि हैदराबाद की एक सूचना तकनीक कंपनी ने हाल में इसी तरह की प्रणाली मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर को भी दी है। इसमें फिंगर प्रिंट के जरिये पंजीकरण होता है। बारकोड आधारित पर्ची पर दर्शन का समय दिया जाता है।
इधर, पुणे के पास आलंदी में पंढरपुर के विट्ठल मंदिर का प्रबंधन व प्रशासन 240 किमी. के यात्रा मार्ग को सैटेलाइट नक्शे और सूचना तकनीक के जरिये संभाल रहा है। पंढरपुर की यह प्रणाली एक स्थान पर भीड़ का दबाव बनने से रोकती है। अब इसकी तुलना जरा उत्तर प्रदेश में गोवर्धन या चित्रकूट में कामदगिरि की परिक्रमा के इंतजामों से करिये। कितनों के लिए यह यात्रा यंत्रणा बन जाती है। इधर कुछ प्रमुख तीर्थो में गर्भ गृह के आकार बढ़ाए गए हैं। दर्शनार्थियों को प्रतीक्षा के लिए सुविधाजनक ढांचा उपलब्ध कराया गया है।
इन आधुनिक व्यवस्थाओं के उलटे देश के तमाम बड़े और पुराने तीर्थो में क्या है। खुले आसमान के नीचे, गंदे, फिसलन भरे और अतिक्रमण से अटे मार्गो या सीढि़यों पर घंटों इंतजार। दर्जनों पुजारियों की खींचतान लेकिन कोई सूचना या सहायता नहीं। सुरक्षा के नाम पर दिखावटी मेटल डिटेक्टर और कुछ सिपाही और हमेशा किसी अनहोनी का खतरा!
यह अनहोनी कल नैनादेवी में घटी थी, तो आज चामुंडा देवी में करीब 150 श्रद्धालुओं की बलि चढ़ी है। कौन जाने कल किसी दूसरे तीर्थ पर इसी तरह आस्था लेकर आए लोगों हादसे का प्रसाद मिले। वजह साफ है कि हमें पूजा करना आता है पूजा स्थलों को ठीक ढंग से चलाना नहीं।

राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने चामुंडा देवी मंदिर हादसे में मरने वालों के परिजनों को 2-2 लाख और घायलों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया है। मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा मंदिर 400 फुट की ऊंचाई पर बना है।

मंदिर में श्रद्धालु पहले नवरात्रि के मौके पर सुबह-सवेरे दर्शनों के लिए आए हुए थे। श्रद्धालुओं में महिलाएं अधिक थीं। मंदिर में भारी भीड़ थी और लोग रात से ही दर्शन के लिए लाइन में लगे हुए थे। करीब 5।30 बजे अचानक मंदिर में भगदड़ मच गई। भगदड़ के चश्मदीद जिसने अपना नाम संता बताया कहा कि अधिकारियों ने किसी वीआईपी के लिए श्रद्धालुओं को मंदिर में जाने से रोका जिसके कारण भगदड़ मच गई।

लेकिन पुलिस भगदड़ के कुछ और ही कारण बता रही है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी राजीव दसोथ ने बताया- भगदड़ उस समय शुरू हुई जब मंदिर के पास लगा बैरिकेड टूट गया और लोग इधर उधर भागने लगे।

मेरा विचार

१। मन्दिर के संस्थापक तथा न्यासी सदैव चढावे में बहुत ध्यान देते हैं

२। मन्दिर में आबादी बढ़ने के साथ समय - समय पर नई सुविधाए बढ़नी चाहिए

३। हम २१वी सदी में जा रहे हैं लेकिन हमारी तैयारियां १२वी सदी की हैं

४। कुल मिला कर फिर बरसात होगी, हम फिर कुछ नये राग सुनेगें

५। अगर हर दिन मन्दिर में १००० लोग आतें हैं और कम से कम १० रुपये भी चढाते हैं तो ये १०,००० रूपये प्रतिदिन तथा ३,००,००० महीने का होता है इसकी कुछ प्रतिशत भी अगर संस्थापक तथा न्यासी प्रबंधन तथा व्यवस्था बढ़ाने में लगायें तो उनकी आमदनी भी बढ़ सकती है तथा लोगों को भी खुशी होगी

4 comments:

Asha Joglekar said...

सही कहा है ।

सतीश पंचम said...

सही मुद्दा उठाया है।

Udan Tashtari said...

विचारणीय!

Gyan Dutt Pandey said...

धर्म को भी बेहतर प्रबन्धन की आवश्यकता है। और शायद कुछ अधिक ही।